सिविल अस्पताल के स्वास्थ्य कर्मचारियों का कारनामा, मुर्दों का जारी किया वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट




आदमी नकली, सर्टिफिकेट असली, कोड बना मौत का सौदागर

पलवल, 3 जुलाई (सुन्दर कुंडु) : कोरोना की महामारी में पूरे जिले ने ऐसी भी परिस्थितियां देखी कि सरकार और पूरा प्रशासन वैक्सीन लगवाने को लेकर लगातार अपील करते रहे ,लेकिन लोग अफवाहों के समंदर में गोते लगाते रहे। इस बीच कोरोना की दूसरी लहर ने वैक्सीन के सारे भ्रम तोड़ दिए और लोग कोरोना से जान बचाने के लिए बढ़चढ़ कर वैक्सीनेशन ड्राइव में भाग लेने लगे। आलम ये हो गया कि जिले में वैक्सीन कम पड़ गया और डिमांड ज्यादा हो गयी। लोगों के समझ आ गया कि कोरोना के सभी वेरिएंट से बचने का एक मात्र इलाज है वैक्सीनेशन।

ऐसे हालातों में जहां कोरोना जैसी महामारी से लड़ने के लिए लोग वैक्सीनेशन के लिए आगे आ रहे हैं ,वहीं पलवल के सिविल हस्पताल में  बिना वैक्सीन लगवाए नकली सर्टिफिकेट देने का गोरखधंधा चल रहा है। यहां के सुरेन्द्र नामक लैब टेक्नीशियन ने 1500 रुपए लेकर मृत व्यक्ति का वेक्सीनेशन सर्टिफिकेट बना डाला। जबकि वेक्सीनेशन सर्टिफिकेट की स्वास्थ्य विभाग के रजिस्टर में कोई एंट्री नहीं दर्शाई गई है। एक स्टिंग ऑपरेशन में यह पता चला है कि यहां का स्टाफ डेढ़ हज़ार रुपए में कोरोना की दोनों वैक्सीन बिना लगवाए ही सर्टिफिकेट देकर वैक्सीनेशन की धार को कुंद करने का काम कर रहे हैं। हालत यह है कि यह लोग  खुले आम मौत की आगोश में समा गए लोगों के भी असली वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट देने में  कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। किसी भी गलत नाम का सर्टिफिकेट इनसे मात्र डेढ़ से दो हजार हज़ार रुपए देकर बनवाया जा सकता है। इनके लिए इंसान की जान से ज्यादा पैसे का ज्यादा महत्व है। सबसे गंभीर बात यह है कि बिना वैक्सीन लगवाए जो सर्टिफिकेट जारी किया जा रहा है वह कोविड़ एप पर भी जारी हो रहा है।

इस गोरख धंधे में एएनएम के अलावा रजिस्ट्रेशन कर्मचारी के साथ साथ अस्पताल के कई डॉक्टरों के भी शामिल होने की आशंका है। 
बता दें कि वैक्सीनेशन के लिए पूरे पलवल में स्वास्थ्य विभाग ने स्थानीय सामाजिक संस्थाओं के साथ मिलकर जमकर अभियान चलाया हुआ है। वैक्सीन लगवाने के लिए शुरुआती दौर में पहले ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत होती थी बाद में वैक्सीन सेंटर पर ज्यों ज्यों भीड़ बढ़ती गई तो मौके पर ही रजिस्ट्रेशन करना शुरू कर दिया गया। रजिस्ट्रेशन करने के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम खुद भी एक कोड का इस्तेमाल करती थी और काम से बचने के लिए स्थानीय सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ताओं को भी कोड दे दिया जाता था जिससे वह भी वैक्सीन कराने वाले का रजिस्ट्रेशन कर सके। 
आखिरकार यही कोड कोरोना वैक्सीनेशन के सर्टिफिकेट बनाने का हथियार बन गया। इसी हथियार का इस्तेमाल करते हुए यहां के सिविल अस्पताल के स्टाफ ने ना जाने कितने लोगों को बिना वैक्सीन लगवाए ही   सर्टिफिकेट जारी कर दिए। मात्र कुछ पैसे के लालच में ना जाने कितने लोगों की जान पर खेला गया है यह तो होने वाली जांच से  पता चलेगा, लेकिन सरे आम सिटिंग आप्रेशन में 2000 रुपए मांगने के बाद भी अभी तक दोषियों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज न होना कुछ और ही इशारा कर रहा है। लोगों को अब इस गोरख धंधा में संलिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों पर कार्रवाई होने का इंतजार है।

वहीं लैब टेक्नीशियन सुदर्शन ने अपनी गलती स्वीकारते हुए कहा कि उन्होंने पैसे लेकर सर्टिफिकेट बनाया था। उन्होंने इससे पूर्व इस प्रकार का ऐसा कोई कार्य नहीं किया है। उसे लगता है कि उसे फंसाने की साजिश की गई है।




वहीं जब इस बारे में पलवल के विधायक दीपक मंगला से बात की तो उन्होंने कहा कि यह लोगों की जान से जुड़ा हुआ मामला है। एक तरफ जहां सरकार लोगों की जान की हिफाजत करने के लिए पूरी ताकत से कोरोना महामारी के खिलाफ जंग में टीकाकरण अभियान चला रही है, वहीं कुछ लोग पैसों के लालच में लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाएगा। सरकार इनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करेगी। डॉ. योगेश मालिक टीकाकरण नोडल अधिकारी का कहना है कि मामला उनके  संज्ञान में आया है जिसकी जांच की जा रही है फिलहाल तीन डॉक्टरों की जांच कमेटी बनाई गई है जो कि आगामी 2 दिन के अंदर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी जो भी कर्मचारी जांच में संलिप्त पाया जाएगा उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।


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